Delhi Food Outlets: (डॉ. रामेश्वर दयाल) दिल्ली चूंकि देश की राजधानी है, इसलिए मिष्ठान्न के मसले पर उसका जवाब नहीं है. पूरे देश की नामी मिठाइयां यहां पर मिलती हैं. अगर आप मीठे के शौकीन हैं तो कहीं न कहीं पर आपको दूसरे प्रदेशों की नामी मिठाइयों के दर्शन हो जाएंगे. इनमें पश्चिम बंगाल का रोशोगुल्ला हो या चोमचोम, गुजरात का श्रीखंड हो या मोहनथाल, दक्षिण भारत की मैसूर पाक, पायदाम या नारियल के लड्डू, उत्तराखंड की बाल मिठाई हो या हिमाचल प्रदेश का बबरु, महाराष्ट्र के मोदक हो या गोवा का बेबिंका केक. इन सबका स्वाद आप दिल्ली में कहीं न कहीं चख सकते हैं. उत्तर भारत (हिंदी प्रदेश) की मिठाइयां लगभग एक जैसी हैं, इनमें जलेबी, बर्फी, लड्डू व कई मिठाइयां शामिल हैं. उत्तर भारत में तो कुछ मिठाइयां ऐसी हैं जो शहरों के नाम से मशहूर हैं, इनमें आगरा का पेठा, कानपुर के ठग्गू के लड्डू, मथुरा का पेड़ा आदि. आज हम आपको एक शहर की मिठाई से रूबरू करवा रहे हैं. उसका स्वाद इतना लाजवाब है कि आप महसूस करेंगे कि वाकई उस शहर की मिठाई खा रहे हैं.
मिठाई भी और भगवान का प्रसाद भी
मथुरा के पेड़े के बारे में तो आप जानते ही है. यह मिठाई भी है और भगवान को अर्पित किए जाने वाला प्रसाद भी. पेड़े को भारत की पुरानी मिठाइयों में शुमार किया जाता है. विशेष बात यह है कि इसका जन्म मथुरा में ही हुआ, जो भगवान कृष्ण की नगरी रही है. पेड़े को लेकर एक किंवदंती है कि भगवान कृष्ण की मां यशोदा ने दूध को उबालने के लिए रखा था, वह इसे चूल्हे पर चढ़ाकर भूल गईं. लगातार पकने से दूध बहुत ही गाढ़ा हो गया. अब वह पीने लायक नहीं रह गया था. इसके बाद उन्होंने उसमें बूरा मिलाकर पेड़े बना दिए और बाल कृष्ण को खाने को दिया.
पुरानी दिल्ली स्थित चांदनी चौक में ऐतिहासिक गौरी शंकर मंदिर है. इसी मंदिर के प्रांगण में आपको ‘बृजवासी मिठाई वाला’ की दुकान दिख जाएगी
उन्हें ये बहुत स्वादिष्ट लगे. इसके बाद मथुरा में पेड़े बनाए जाने लगे और आज भी वहां के पेड़े बहुत मशहूर हैं. मथुरा के ये मशहूर पेड़े दिल्ली में ही मिलते हैं और उन्हें बनाने वाले भी मथुरा के निवासी हैं जो करीब 100 साल पहले दिल्ली आ गए थे. पुरानी दिल्ली स्थित चांदनी चौक में ऐतिहासिक गौरी शंकर मंदिर है. इसी मंदिर के प्रांगण में आपको ‘बृजवासी मिठाई वाला’ की दुकान दिख जाएगी, जिसके पेड़े पूरी दिल्ली में मशहूर हैं.
पेड़े मुंह में रखते ही घुल जाते हैं
इस दुकान के पेड़े गौरी शंकर मंदिर में भगवान शिव को प्रसाद के रूप में अर्पित किए जाते हैं तो लगे हाथों लोग मिठाई के तौर पर भी खाते हैं और अपनों व रिश्तेदारों को खिलाने के लिए ले जाते हैं. इस दुकान पर जाइए, आपको वहां श्रद्धालु और ग्राहक पेड़ा खरीदते नजर आएंगे. पीतल की बड़ी परात में रखे हुए पेड़े आपका ध्यान बरबस ही खींच लेंगे. आखिर क्यों न खींचे. दूध को घंटों उबालकर उसे गाढ़ा और नेचुरल ब्राउन रंग का होने तक लगातार उबाला और चलाया जाता है.
यहां मथुरा जैसे पेड़ों के स्वाद के अलावा भी कई अन्य स्वादिष्ट मिठाइयां मिलती हैं.
जब वह खोया बन जाता है, तो उसे कड़ाही से निकालकर उसमें चीनी, पिसी इलायची व केसर डाल दिया जाता है. फिर उसके पेड़े बना दिए जाते हैं. आप मुंह में डालेंगे, तो मुंह में इसकी चाशनी बनने लगेगी. मुंह में इलायची की खुशबू और केसर का स्वाद आने लगेगा. बिल्कुल मथुरा के पेड़े जैसा है इनका स्वाद. इसका मूल्य 400 रुपये किलो है.
1920 में मथुरा से दिल्ली आया था परिवार
इस दुकान पर दूध से बनी अन्य मिठाइयां भी मिलती हैं, जिनमें चार प्रकार की बर्फी, कलाकंद के अलावा लड्डू आदि शामिल हैं. अधिकतर की कीमत 400 रुपये के आसपास ही है. इसको बनाने वाले मथुरा के ही निवासी है, इसलिए इन मिठाइयों का स्वाद और खुशबू भी जानदार है. वर्ष 1920 में मूलचंद ने मथुरा से आकर यहां मंदिर प्रांगण में पेड़ा बेचना शुरू किया था. उसके बाद दुकान की बागडोर उनके बेटे जवाहर शर्मा के पास आ गई.
वर्ष 1920 में मूलचंद ने मथुरा से आकर यहां मंदिर प्रांगण में पेड़ा बेचना शुरू किया था.
आज परिवार की तीसरी पीढ़ी के रूप मे उनके बेटे अनिल शर्मा दुकान को संभाले हुए हैं. उनका कहना है कि हम खानदानी हलवाई हैं और उसी तरह से मिठाई बनाते हैं, जैसे मथुरा में बनाई जाती है. दुकान सुबह 6 बजे खुल जाती है रात 8:30 बजे तक पेड़ों का आनंद लिया जा सकता है. साप्ताहिक अवकाश कोई नहीं है.
नजदीकी मेट्रो स्टेशन: लाल किला