Delhi Food Joints: (डॉ. रामेश्वर दयाल) सालों पहले भारत से अलग होकर पाकिस्तान एक अलग देश का दर्जा पा गया हो, लेकिन अविभाजित भारत में उस इलाके (पाक-क्षेत्र) के व्यंजन आज भी भारतवासियों को आकर्षित करते रहे हैं. कुछ साल पहले तक भारत के अधिकतर शहरों में कराची, लाहौर, पिशौरी, मुलतानी नाम से खानपान की दुकानें हुआ करती थीं, जहां मिलने वाला भोजन लोगों को भाता था, क्योंकि उसका स्वाद उत्तर भारत के भोजन से अलग होता था. लगे हाथों आपको यह भी बताते चलें कि विभाजन के दौरान पाक से आए विस्थापितों (Refugees) ने भी भारत में वहां के स्वाद को बनाए रखा और नाम कमाया. दरिया गंज इलाके में एक पेशावरी होटल का मटन इतना मशहूर था कि उसे पूरी
दिल्ली से लोग खाने आते थे. इसके अलावा चांदनी चौक में हलवाई की एक मशहूर दुकान का कराची हलवा आज भी लोगों को लुभाता है. इसी कड़ी में आज हम आपको पाकिस्तान के मुलतान इलाके की मोठ-कचौड़ी-चावल का स्वाद करवाते हैं. इस दुकान को दिल्ली में मुलतानी मोठ कचौड़ी खिलाने का भी श्रेय दिया जाता है.
यहां मिलेगा अनूठा ज़ायका
दिल्ली के राजेंद्र नगर, पटेल नगर, पहाड़गंज, लाजपत नगर, आदर्श नगर आदि ऐसे इलाके हैं, जहां रिफ्यूजी की संख्या बहुत अधिक है. यहां पर अभी भी पाकिस्तान की खुशबू से महकता भोजन मिलता है. इन्हीं में से पहाड़गंज स्थित मुलतानी ढांडा इलाके की गली नंबर-6 में ‘मुलतान मोठ भन्डार’ नाम से बहुत ही पुरानी दुकान है. इसी दुकान पर मिलती है, मुलतान (पाकिस्तान) के स्वाद से लिपटी मोठ-कचौड़ी और चावल. आप ऐसी ही किसी दुकान पर जाएंगे तो वहां मोठ दाल में ही कचौड़ी और चावल पेश किए जाएंगे, लेकिन दिल्ली की यह ऐसी इकलौती दुकान है, जहां सुबह कचौड़ी के साथ मूंग दाल और दोपहर से मोठ दाल परोसी जाती है.
प्राकृतिक हरे पत्ते पर रखकर दी जाती है कचौड़ी
आप सुबह नाश्ते के तौर पर इस दुकान में जाएंगे और कचौड़ी का ऑर्डर देंगे तो उस वक्त आपको दाल-मसाले की पिट्ठी से भरी गरमा-गरम और खस्ता कचौड़ी के साथ पीली धुली मूंग दाल के साथ परोसी जाएगी. साथ में हरी चटनी, मसाला छिड़की कटी प्याज व हरी मिर्च के अचार का साथ इसके स्वाद को और बढ़ा देगा. इस दुकान की एक खासियत यह है कि सालों से कचौड़ी को हरे पत्ते पर रखकर परोसा जाता है. इससे फीलिंग आती है कि पुराने वक्त का कोई भोजन खाया जा रहा है.
यहां दो कचौड़ी और दाल की कीमत 40 रुपये है. दाल चावल खाएंगे तो 25 रुपये में काम हो जाएगा.
दोपहर 12 बजे के बाद मैन्यू में थोड़ा बदलाव आ जाता है. अब कचौड़ी व अन्य चीजें तो वही रहती हैं, लेकिन दाल मोठ वाली हो जाती है. यह गाढ़ी दाल भी कचौड़ी के स्वाद को बढ़ा देती है. अगर आप दाल के साथ यहां के चावल भी खाएंगे तो उनका स्वाद भी अलग सा है. मुलतानी दाल की विशेषता यह है कि उसे घंटों तांबे के बर्तन में पकाया जाता है, तभी उसका स्वाद दूसरी दालों से अलग होता है. दो कचौड़ी और दाल की कीमत 40 रुपये है और दाल चावल खाएंगे तो 25 रुपये में काम चल जाएगा.
82 साल पुरानी दुकान का स्वाद बरकरार
यह दुकान उस परिवार की है जो आजादी से पहले ही पाकिस्तान से पहले भारत आ गए थे. यहां अधिकतर मुलतान से आए लोग हैं, तभी इसे मुलतानी ढांडा (मोहल्ला) कहा जाता है. वर्ष 1940 में इस दुकान को नंदलाल ने शुरू किया. शुरू से ही उन्होंने मोठ कचौड़ी बेची. उसके बाद यह दुकान उनके बेटे त्रिलोक चंद, फिर उनके बेटे मनोज चावला से होते हुए उनके बेटे तुषार चावला की सरपरस्ती में आ गई. उनका कहना है कि हमारे परिवार ने ही दिल्ली में मोठ-कचौड़ी बेचना शुरू किया, जिसके बाद लोगों ने इसके फड़ लगाने शुरू कर दिए.
आज दिल्ली में मोठ-कचौड़ी की सैंकड़ों दुकानें व ठिए दिख जाएंगे. इस दुकान पर सुबह 8 बजे खाना मिलना शुरू हो जाता है और रात 8 बजे तक मोठ-कचौड़ी का जलवा रहता है. कोई अवकाश नहीं है.
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