Delhi Food Outlets: (डॉ. रामेश्वर दयाल) जब भी मुगलकाल के खानपान की बात होती है तो दिमाग में नॉनवेज आइटमों की ही तस्वीर उभरती है. इसमें कोरमा, कबाब, मुर्ग मुसल्लम से लेकर बिरयानी आदि आते हैं. मुगलई भोजन में शाकाहारी खानपान बहुत अधिक मशहूर नहीं हो पाया है. अगर वेज खाने की बात होगी तो भी उसमें मांस की घुसपैठ भी होगी, जैसे दाल-गोश्त, कीमा-मटर, भिंडी-गोश्त या मुर्ग साग. अगर हम मुगलई मिठाई की बात करें तो उसमें भी कोई बहुत वैरायटी नहीं है. खोजबीन में हमें दो-तीन मुगलई मीठे (Dessert) के ही दर्शन हुए. इनमें फिरनी, शीरमाल और शाही टुकड़ा शामिल है. आज हम आपको शाही टुकड़ा खिलाने के लिए ले चल रहे हैं. मजेदार बात यह है कि यह मिष्ठान्न पुरानी दिल्ली के बल्लीमारान इलाके में मिलता है, जहां पर मुगलकालीन शायर मिर्जा गालिब ने पूरी जिंदगी बिताई थी.
मौसम के हिसाब से परोसी जाती है मुगलई मिठाई
हमने आपको तीन मुगलई मिष्ठान्न की जानकारी दी. इन तीनों की अलग-अलग विशेषताएं और स्वाद हैं और अलग-अलग मौसम में इनको परोसा जाता है. जैसे फिरनी, जो एक तरह से गाढ़ी और ठंडी खीर है, वह गर्मी में पेश की जाती है. शीरमाल, एक मीठी रोटी है, जिसे 12 महीने खाया जा सकता है, जबकि शाही टुकड़ा सर्दी की मिठाई है, क्योंकि इसे गरमा-गरम ही पेश किया जाता है और यह सर्दी के मौसम में ही बनाई जाती है. शाही टुकड़ा के कुछ प्रकार भी है, लेकिन आज हम जिस शाही टुकड़े से आपको रूबरू करवा रहे हैं, वह एक तरह से हलवा ही है, लेकिन वह सूजी के बजाय ब्रेड से बनाया जाता है.
शाही टुकड़ा सर्दी की मिठाई है, इसे विंटर सीजन में ही बनाया जाता है.
मुगलकाल में इसे रोटी से बनाया जाता था. इसमें ब्रेड को घी में तला जाता है, फिर इसमें गाढ़ा दूध, खोया और चीनी व स्वाद बढ़ाने के लिए अन्य सामान डाले जाते हैं. यह ब्रेड घुलकर हलवे जैसी हो जाती है. इसके बाद इसमें केसर, मेवे आदि मिलाए जाते हैं. इसे धीमी आंच पर पकाया जाता है, उसके बाद जो स्वाद उभरता है, वह लाजवाब है.
पारंपरिक मिठाई से बिल्कुल अलग है शाही टुकड़ा
पुरानी दिल्ली का बल्लीमारान इलाका तो सबके लिए जाना-पहचाना है. लाल किला से चांदनी चौक बाजार में प्रवेश करेंगे तो नई सड़क के बाद बायीं ओर जो सड़क जाती है, वह बल्लीमारान कहलाता है. इसी छोटी सड़क में गली कासिम जान है, जहां जानेमाने शायर मिर्जा गालिब रहते थे. गली कासिम जान से पहले बायीं ओर गली कुप्पे वाली है, उसके मुहाने पर दो भाइयों आसिफ व शाकिर का ‘वेज शाही टुकड़े वाले’ नाम का ठिया है. ठिया क्या है, बस समझ लीजिए कि रंगबिरंगा, खुशबू उड़ाता मीठा व्यंजन आपके सामने है. एक बड़ी सी परात में यह शाही टुकड़ा विराजमान है. उसके ऊपर खोये की पतर चढ़ी हुई है, उसके ऊपर कतरे हुए ड्राई फ्रूट्स और कलरफुल चेरी की परत लगी हुई है.
इस डिश को नवंबर से लेकर 15 मार्च तक बेचा जाता है.
शाही टुकड़े से भरी परात के नीचे मंदी आंच जल रही है. यह डिश इतनी गरम हो जाती है कि इसे फूंक-फूंककर खाना पड़ता है. अलग ही स्वाद है इसका. किसी भी पारंपरिक मिठाई से बिल्कुल अलग. मात्र 25 रुपये में 100 ग्राम. खाइए और मजा लूटते रहिए.
बहुत ही नफासत से बनता है शाही टुकड़ा
इस शाही टुकड़े को दो भाई मोहम्मद आसिफ व मोहम्मद शाकिर बनाकर बेचते हैं. करीब 20 साल से वे इस व्यजंन को लोगों को खिला रहे हैं. उनका कहना है कि बहुत ही नफासत के साथ इसे बनाना पड़ता है, जरा सी लापरवाही बरती तो शाही टुकड़े का स्वाद एकदम बदल जाएगा. बनाते वक्त पूरी निगरानी रखनी पड़ती है. उन्होंने यह भी बताया कि यह डिश सर्दी की है, गर्मी में खाने में आनंद नहीं मिल पाता. वे इस डिश को नवंबर से लेकर 15 मार्च तक बेचते हैं. दोपहर 12 बजे इनके शाही टुकड़े की परात लग जाती है. परात खाली हुई, नई परात सज गई. इस तरह रात 10 बजे तक शाही टुकड़ा वहां महकता रहेगा. चूंकि दोनों भाई बगल की गली में ही रहते हैं, इसलिए कोई अवकाश नहीं है.
नजदीकी मेट्रो स्टेशन: चांदनी चौक