‘मुगलई नाश्ते’ से दिन की शुरुआत करना चाहते हैं तो जामा मस्जिद में ‘अल-जवाहर’ पर आएं

Delhi Food Outlets: (डॉ. रामेश्वर दयाल) जब भी नाश्ते की बात होती है तो बस यही लगता है कि सुबह-सुबह हल्का-फुल्का, ताजा या गरमा-गरम नाश्ता मिल जाए ताकि रातभर की भूख कुछ शांत हो सके. अलग-अलग प्रांतों या राज्यों में नाश्ते के कई प्रकार हैं. कहीं पर सुबह पराठे, दूध या लस्सी से काम चलाया जा रहा है तो कहीं पर पोहा-जलेबी खाकर पेट को सेट किया जा रहा है तो कहीं इडली सांभर तो कहीं पर सुबह सुबह पूरी या कचौड़ी खाकर दिन शुरू किया जा रहा है. सुबह लोग नाश्ते के तौर पर ब्रेड-बटर और चाय से भी काम चला रहे हैं. आप पाएंगे कि ये सभी नाश्ते शाकाहारी हैं और पेट और स्वास्थ्य के लिहाज से ‘हल्के’ हैं. लेकिन आज हम आपको ऐसे नाश्ते से रूबरू करा रहे हैं, जो पूरे तौर पर मांसाहारी है. इस नॉनवेज डिश के साथ मोटी खमीरी रोटी भी शामिल है. असल में इसे मुगलई नाश्ता कहा जाता है. यह आम नॉनवेज डिश की तरह नहीं है, क्योंकि यह सुबह ही मिलता है. पुरानी दिल्ली के मुस्लिम बहुल इलाके में आप इस नाश्ते का स्वाद चख सकते हैं.

रातभर धीमी आंच पर होता है तैयार

इस नाश्ते में दो प्रकार की मटन डिश शामिल हैं. एक है मटन नाहरी और दूसरा मटन पाया. यह दोनों ऐसी डिश हैं जिसमें हड्डियों (Bones) की बहुतायत है. गाढ़ी ग्रेवी वाली इस डिश का स्वाद बिल्कुल ही
अलग है. खाकर आपको लगेगा कि यह डिश शरीर को मजबूती प्रदान करेगी. आज यही डिश हम आपको खिलाने के लिए चल रहे हैं. यह मिलती है, जामा मस्जिद के मशहूर रेस्तरां ‘अल-जवाहर’ पर. मटन नाहरी और पाया की विशेषता यह है कि इस नाश्ते को रात में ही धीमी आंच पर मसालों के साथ चढ़ा दिया जाता है, ताकि हड्डियों की सारी ‘ताकत’ तरी में आ जाए. चूंकि घंटों आंच पर बनने के बाद इस डिश में
चिकनाई बहुत अधिक उभर आती है, इसलिए ताजी और गरमा-गरम खमीरी मोटी रोटी से खाया जाता है.

इस नाश्ते में दो प्रकार की मटन डिश शामिल हैं. एक है मटन नाहरी और दूसरा मटन पाया.

नाहरी का स्वाद है अनूठा

यह डिश इस रेस्तरां में सुबह 8 बजे मिलना शुरू होती है और सुबह 11 बजे तक ही इसे खाया जा सकता है. उसके बाद रेस्तरां में दूसरे मु्गलई खाने मिलना शुरू हो जाते हैं. आप सुबह इस रेस्तरां में जाकर मटन
नाहरी या मटन पाया और मोटी रोटी का ऑर्डर देंगे, तो आपके सामने कांच की बड़ी कटोरी में इसे पेश कर दिया जाएगा. साथ में एक अलग छोटी प्लेट में अदरक के लच्छे, कटी हरी मिर्च व नींबू के टुकड़े सर्व किए
जाएंगे. पहला कौर खाते ही आपको महसूस होने लगेगा कि यह डिश दूसरे मुगलई खानों से स्वाद के मसले में बिल्कुल अलग है. मटन की हड्डियां पूरी तरह से मुलायम और गोश्त ऐसा कि उसे चबाने में मशक्कत ही न करनी पड़े. अलग तरह की डिश, साथ में अदरक के लच्छे, कटी हरी प्याज और ऊपर से नींबू की खटास इसे अलग ही तरह का स्वाद बना देती हैं. अगर आप अकेले हैं तो हाफ मटन नाहरी काफी रहेगी, उसके साथ दो मोटी रोटी आसानी से खाई जा सकती है. इसकी कीमत 280 रुपये है. रोटी की कीमत 10 रुपये है.

जामा मस्जिद के मशहूर रेस्तरां ‘अल-जवाहर’ पर मुगलई नाश्ते का स्वाद ले सकते हैं.

जामा मस्जिद के मशहूर रेस्तरां ‘अल-जवाहर’ पर मुगलई नाश्ते का स्वाद ले सकते हैं.

प्रधानमंत्री नेहरू ने रेस्तरां का किया था उद्घाटन

भोजन के जानकार कहते हैं कि नाहरी या पाये का सालन असल में पेट में तरावट करता है और हड्डियों में मजबूती भी लाता है. इसके मसाले बिल्कुल ही अलग होते हैं. इसलिए जानकार इसे खाने चले आते हैं. यह
रेस्तरां पुरानी दिल्ली के पुराने रेस्तरां में से एक है. ओनर बताते कि इसका उद्घाटन तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने किया था और उनके ही नाम पर इसका नामकरण हुआ. इस रेस्तरां को बदरुद्दीन कुरैशी ने शुरू किया था. आज उनके परिवार के मोहम्मद अख्तर, मोहम्मद अकरम और अन्य सदस्य इसे चला रहे हैं. आपको बताते चलें कि पुराने वक्त में फिल्म स्टार दिलीप कुमार भी इस रेस्तरां का खाना नौश फरमाने आ चुके हैं. कांग्रेस नेता संजय गांधी का यह मनपसंद रेस्तरां रह चुका है. सुबह आठ बजे यह शुरू हो जाता है और रात 10 बजे तक यहां मुगलई खाने का लुत्फ लिया जा सकता है. कोई अवकाश नहीं है.

नजदीकी मेट्रो स्टेशन: जामा मस्जिद

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