Nanoparticles Food Packaging Materials : केमिकल और बायोलॉजिकल गुणों (chemical and biological properties) और जैव-अणुओं (biomolecules) के कारण फूड और एग्रीकल्चर (कृषि) समेत विभिन्न क्षेत्रों में नैनो टेक्नोलॉजी (nanotechnology) का यूज बढ़ रहा है. एक नई स्टडी में पता चला है कि नैनो टेक्नोलॉजी (nano technology) फूड प्रोडक्ट्स की सेल्फ-लाइफ बढ़ाने के साथ-साथ उनके टेस्ट (स्वाद), कलर और क्वालिटी बनाए रखने में इफेक्टिव रोल निभा सकती है. ये बात एनआईटी (National Institute of Technology) आंध्र प्रदेश और मिजोरम यूनिवर्सिटी (Mizoram University) द्वारा की गई ज्वाइंट स्टडी में सामने आई है. रिसर्चर्स का कहना है कि नैनो पार्टिकल्स बेस्ड मेटिरियल, खाद्य पदार्थो (foodstuffs) के सेल्फ-लाइफ, स्वाद, बनावट और जैव-उपलब्धता (bioavailability) जैसे कार्यात्मक गुणों (functional properties) को बढ़ाकर पारंपरिक और नॉन-बायोडिग्रेडेबल (non-biodegradable) पैकिंग सामग्री के मुकाबले अधिक लाभ प्रदान करती है. इसके अलावा टेंप्रेचर बनाए रखने, पैक किए हुए खाद्य पदार्थो में रोगजनकों (pathogens), कीटनाशकों (pesticides), विषाक्त पदार्थो (toxins) और अन्य केमिकल्स का पता लगाने के लिए सेंसर के रूप में नैनो सामग्री का उपयोग किया जा सकता है.
इस स्टडी का निष्कर्ष यूरोपियन फूड रिसर्च एंड टेक्नोलाजी (European Food Research and Technology) में प्रकाशित किया गया है.
क्या कहते हैं जानकार
एनआइटी आंध्र प्रदेश में डिपार्टमेंट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी (Department of Biotechnology) के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ तिंगीरीकारी जगन मोहन राव (Tingirikari Jagan Mohan Rao) ने बताया, ये स्टडी पैकिंग सामग्री को यांत्रिक स्थिरता (mechanical stability) प्रदान करने के लिए नैनो कणों की भूमिका को रेखांकित करती है. ये बताती है कि रोगजनकों, कीटनाशको और एलर्जी पैदा करने वाले तत्वों का पता लगाने के साथ-साथ खाद्य उत्पादों को खराब और दूषित होने से बचाने के लिए रोगाणुरोधी (antimicrobial) गुणों से लैस पैकिंग सामग्री के लिए नैनो-सेंसर कैसे विकसित किए जा सकते हैं.
डॉ राव ने आगे बताया कि खाद्य संरक्षण (food preservation) में अकार्बनिक नैनो कणों (inorganic nano particles) की भूमिका फूड प्रोडक्ट्स की सेल्फ-लाइफ बढ़ाने और हानिकारक अल्ट्रा वायलेट विकिरणों (UV Rays) से भोजन की रक्षा करने वाले एंटीआक्सीडेंट रिलीज करने से संबंधित है. इस स्टडी में नैनो सामग्री से संबंधित खाद्य सुरक्षा पहलुओं का भी खास ध्यान रखा गया है. खाद्य पदार्थों पर उचित लेबलिंग एवं निपटान से जुड़े सुरक्षा विनियमों जैसी पर्यावरण अनुकूल तरीकों के पालन पर ध्यान केंद्रित किया गया है, जिससे मनुष्यों एवं जानवरों पर साइटो टाक्सिक स्टडी (cytotoxic study) का मार्ग प्रशस्त होता है.
मिजोरम यूनिवर्सिटी के डॉ पुनुरी जयशेखर बाबू (Punari Jayasekhar Babu) ने बताया कि प्राकृतिक परिस्थितियों में स्तनधारी कोशिकाओं (mammalian cells) पर नैनो कणों के विषाक्त प्रभावों का मूल्यांकन करने के लिए बहुत कम काम किया गया है. अकार्बनिक नैनो कण (Inorganic Nano Particles) अघुलनशील होते हैं और मानव कोशिकाओं में जैव संचय (bioaccumulation) की एक बड़ी चुनौती पेश करते हैं, जो जैव-विषाक्तता (biotoxicity) का कारण बन सकते हैं. इस प्रकार, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में इसके उपयोग में बाधा उत्पन्न हो सकती है.