नई दिल्लीः देश में ओमिक्रॉन के मामले 1000 के आंकड़े को पार कर चुके हैं. ओमिक्रॉन के इस बढ़ते प्रकोप के चलते कई राज्यों में पाबंदियां लागू कर दी गई हैं. ओमिक्रॉन को लेकर लोगों के मन में एक डर भी देखा जा रहा है लेकिन इस बीच राहत भरी खबर ये है कि ओमिक्रॉन से घबराने की जरूरत नहीं है! ये हम नहीं बल्कि विभिन्न स्वास्थ्य विशेषज्ञ कह रहे हैं. दरअसल दुनियाभर में ओमिक्रॉन मरीजों का विश्लेषण करने पर पता चला है कि ओमिक्रॉन का संक्रमण तेजी से फैलता है लेकिन यह ज्यादा खतरनाक नहीं है.
एक्सपर्ट्स ने किए ऐसे दावे
द गार्जियन की एक रिपोर्ट में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर और ब्रिटिश सरकार के जीव विज्ञान सलाहकार सर जॉन बेल के हवाले से लिखा गया है कि ‘ओमिक्रॉन से अस्पतालों में भर्ती होने वाले मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है लेकिन यह उम्मीद से कम खतरनाक है और लोग इस संक्रमण से जल्दी ठीक हो रहे हैं. सर जॉन बेल ने बताया कि ओमिक्रॉन के संक्रमण में अस्पताल में भर्ती रहने का औसतन समय 3 दिन ही है.’ हालांकि विशेषज्ञ लोगों को सावधानी बरतने की सलाह दे रहे हैं.
सामान्य इंफेक्शन है ओमिक्रॉन!
कोरोना के ओमिक्रॉन वेरिएंट के बारे में सबसे पहले साउथ अफ्रीका में पता चला. रायटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक अफ्रीकी डॉक्टर्स का कहना है कि ओमिक्रॉन वेरिएंट के लक्षण काफी हल्के हैं और घर पर भी मरीज ठीक हो सकता है. डॉक्टर्स ने बताया कि ओमिक्रॉन के मरीजों में सामान्य तौर पर बदन दर्द और सिर दर्द के लक्षण देखे गए हैं और यह सामान्य वायरल इंफेक्शन जैसे ही हैं.
स्पेनिश फ्लू के दौरान भी ऐसा ही हुआ था
कई एक्सपर्ट्स का यह भी कहना है कि ओमिक्रॉन वेरिएंट कोरोना महामारी के अंत की शुरुआत भी हो सकता है! दरअसल आउटलुक इंडिया ने मैक्स हेल्थकेयर के ग्रुप मेडिकल डायरेक्टर डॉ. संदीप बुद्धिराजा के हवाले से बताया कि कोरोना वायरस के म्यूटेशन का पैटर्न स्पेनिश फ्लू के पैटर्न से मिलता दिख रहा है. उन्होंने बताया कि स्पेनिश फ्लू का संक्रमण भी 2 साल में कमजोर हो गया था और फिर यह खत्म हो गया था. स्पेनिश फ्लू की भी दूसरी लहर ज्यादा खतरनाक रही थी और तीसरी लहर में संक्रमण की दर बेहद कम रही थी और फिर यह गायब हो गया था. कुछ ऐसा ही पैटर्न कोरोना महामारी में भी देखने को मिल रहा है.
Omicron करेगा कोरोना का अंत!
डॉक्टर ने बताया कि जिस तरह से ओमिक्रॉन वेरिएंट, डेल्टा वेरिएंट के मुकाबले ज्यादा खतरनाक नहीं लग रहा है, उसे देखते हुए उम्मीद की जा रही है कि यह कोरोना महामारी के अंत की शुरुआत हो सकती है. इसी रिपोर्ट में एम्स के डॉक्टर संजय राय बताते हैं कि यह एक नेचुरल प्रक्रिया है, जिसके तहत कोई भी वायरस अपने सर्वाइवल के लिए अपने संक्रमण की प्रकृति को कम करता जाता है. इसी तरह स्पेनिश फ्लू, स्वाइन फ्लू और H1N1 वायरस के साथ भी हुआ है. साथ ही गौर करने वाली बात यह भी है कि हमारे देश में बड़ी आबादी कोरोना वायरस की चपेट में आ चुकी है और साथ ही 70% के करीब आबादी को कोरोना की वैक्सीन भी लग चुकी है. ऐसे में भारतीयों के शरीर में नेचुरल और वैक्सीन के जरिए आर्टिफिशियल, दोनों तरह की इम्यूनिटी मौजूद है. ये भी एक बड़ी वजह है कि ओमिक्रॉन वेरिएंट भारत में ज्यादा खतरनाक साबित नहीं होगा.
टी सेल्स करती हैं बचाव
जयपुर के वरिष्ठ फिजीशियन डॉ आर.एस खेदर का कहना है कि ओमीक्रॉन वेरिएंट कई म्यूटेशंस के साथ शरीर की पहली रक्षा पंक्ति यानी एंटीबॉडी को हराने में तो सक्षम है लेकिन यह शरीर की दूसरी रक्षा पंक्ति (टी-सेल्स) से जीत नहीं पाता है. ये टी-सेल्स न केवल वेरिएंट की पहचान करने बल्कि उसे बेअसर करने में भी बेहद प्रभावी हैं.
टी-सेल्स क्या होते हैं?
टी-सेल्स व्हाइट ब्लड सेल्स होती हैं, जो वायरस से संक्रमित कोशिकाओं पर हमले कर सकती हैं या उनका मुकाबला करने के लिए एंटीबॉडी बनाने में मदद कर सकती हैं. स्टडीज का अनुमान है कि 70-80% टी सेल्स ओमीक्रॉन के खिलाफ फाइट करते हैं. एंटीबॉडी से इतर, टी-सेल्स वायरस के पूरे स्पाइक प्रोटीन को टारगेट करती हैं, जो ज्यादा म्यूटेशन वाले ओमीक्रॉन में भी काफी हद तक एक जैसा रहता है. केप टाउन यूनिवर्सिटी की स्टडी में पता चला है कि जो मरीज कोविड से ठीक हुए या वैक्सीन लगवाई उनमें 70-80% टी सेल्स ने ओमीक्रॉन के खिलाफ काम किया है.